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ला इस वीरान फ़ज़ा में कुछ पुरनूर नज़ारे बाँट / पुष्पराज यादव

ला इस वीरान फ़ज़ा में कुछ पुरनूर नज़ारे बाँट
अबकी ज़मीं आबाद करे तो घर-घर चाँद सितारे बाँट

इक विरहन ने दिये की लौ से अपना हाथ जलाया है
वृन्दावन के रास-रचैया आ कुछ दर्द के चारे बाँट

जाती रुत तुझे याद रखेगी ऐ मेरे प्यारे शायर सुन
वैरागन को गीत सुना और बच्चों को गुब्बारे बाँट

तेरी याद में खोये-खोये आधे जागे आधे सोये;
भटक रहे हैं कुछ वैरागी इनको दरस दुलारे बाँट

यूँ तो गुज़िश्ता साल भी तूने अंगारे बरसाये हैं
अबकी रुतों में धूप से पहले प्यासों को फुव्वारे बाँट

तेज़ हवा के झोंकों से फूलों की लचकती डाल तले
बैठ मेरे हमराह मुझे दो ख़्वाब तो प्यारे-प्यारे बाँट

ये मेरी दौलत ये मेरी शोहरत ये मेरी दुनिया ये मेरे गीत
बाँटना है तो बाँट ले इनको दिल ना देख हमारे बाँट