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लिंग निर्धारण समस्या हो गई / जहीर कुरैशी
Kavita Kosh से
‘लिंग निर्धारण’ समस्या हो गई
कोख में ही कत्ल कन्या हो गई
लोग कर पाए नहीं खुल कर विरोध
सिर्फ अखबारों में निन्दा हो गई
चल रहा है माफिया —गुंडों का राज
इस कदर कमजोर सत्ता हो गई !
क्या पता किस वक्त अणुबम फट पड़े
ये हमारे युग की चिन्ता हो गई
साधु—संतों ने मचाया इतना शोर
भंग भक्तों की तपस्या हो गई
राज करने के लिए नेता हुए
वोट देने भर को जनता हो गई
मन में मिसरी की तरह घुलती नही
सिर्फ भाषा—जाल कविता हो गई