सुनो, कान्हा -
कहा राधा ने - तुम्हारी बाँसुरी हूँ मैं
होंठ से छूकर
जिसे तुम सुर बनाते हो
और सारी सृष्टि में
जादू जगाते हो
अरे मायावी !
तुम्हारी दिव्य लीला की धुरी हूँ मैं
सात छेदों - सात सुर वाली
अनूठी देह है यह
हाँ, तुम्हारी ढाई आखर चेतना की
गेह है यह
सच, तम्हारे
हाथ के लीलाकमल की पाँखुरी हूँ मैं
इस कुबेला में, अरे लीलापुरुष
संहार तुम रचते
अग्निबाणों से
धरा-आकाश-जल तचते
रचे तुमने
उन प्रलय के बादलों की बीजुरी हूँ मैं