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लुभा रही है बहुत उनके देखने की अदा / गुलाब खंडेलवाल

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लुभा रही है बहुत उनकी देखने की अदा
पर उसको क्यों कहें बादल कि जो बरस न सका!

किसीने देखा, किसीने सुना, किसीने कहा
हमारा जान से जाना भी रंग लाके रहा

रहे हैं एक-से तेवर न ज़िन्दगी के कभी
नहीं हैं चाँद और सूरज भी एक रुख़ पे सदा

बनी तो तुमसे किसी और से बने न बने
तुम्हारा है जो किसी और का हुआ न हुआ

मिलेंगे हम जो पुकारेगा दुख में कोई कभी
हरेक आँख के आँसू में है हमारा पता

सभी के ख़ून की रंगत तो लाल ही है मगर
वो रंग और ही कुछ है कि जो गुलाब बना