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लोग सौ रंग बदलते हैं लुभाने के लिए / अज़ीज़ आज़ाद
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लोग सौ रंग बदलते हैं लुभाने के लिए
कितने होते हैं जतन दिल की बुझाने के लिए
राह रुक जाती है जिस्मों की हदों तक जाकर
फिर मुहब्बत का सफ़र ख़त्म ज़माने के लिए
चन्द लम्हों में किया चाहेंगे बरसों का हिसाब
किसको फ़ुरसत है यहाँ साथ निभाने के लिए
प्यार करते हैं छुपाते हैं गुनाह हो जैसे
कौन तैयार है इल्ज़ाम उठाने के लिए
कैसे मुमकिन है के हर मोड़ पे मिल जाएँ ‘अज़ीज़’
ज़िन्दगी कम है जिन्हें अपना बनाने के लिए