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लोहे का ताप / मुकेश निर्विकार
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					लोहे का स्वाद/उस घोड़े से पूछा ‘धूमिल ने/
जिसके मुंह में लगाम थी। कइयों ने पूछा लुहार से भी/
और भी कई कवियों ने पूछा लोहे का स्वाद जगह-जगह, 
किन्तु मुझे लगता है कि 
अब हम लोहे का स्वाद छोड़ 
लोहे के ताप की बातें करें 
लोहे के ताप पूछे उस ‘छोटू’ से 
जो वेल्डिंग की दुकान पर काम करने को मजबूर है 
और जिसका बचपन झुलसा दिया है, लोहे के ताप ने 
लोहे की चिंगारियों की चकाचोंध चुंधिया रही है 
उसकी आंखो को। 
दिनोंदिन सिमटता जा रहा है 
व्यापक संसार का फ़लक 
उसके लिए 
स्वप्न तो उसके कभी के छिन गए 
अब रोशनी छिनने की बारी है।
 
	
	

