लो, ख़ुश रहो उठाकर तुम, / ओसिप मंदेलश्ताम
लो, ख़ुश रहो उठाकर तुम, इस हथेली से मेरी
सूरज के एक टुकड़े-सी, मीठे मधु की ये ढेरी
हम से कही यह बात पेर्सेफ़ोना की मधुमक्खी ने
कोई खोल नहीं सकता पहले से खुली नाव को
कोई देख नहीं सकता समूर में लिपटी छाँव को
भय-घिरे जीवन को कोई और डरा नहीं सकता
हमारे लिए तो अब चुम्बन ही बचे हैं शेष
छोटी-छोटी झबरी-सी मधुमक्खियों के अवशेष
अपने उस छत्ते से उड़कर मर रही हैं जो
रात के झीने झुरमुट में सरसरा रही हैं वे
ताइगा के घने वन में घर बना रही हैं वे
समय, पराग और गंध ही भोजन है उनका
लो, ज़रा मुझ से भैया, उपहार यह जंगली ले लो
सूखी-मृत मक्खियों की, अदृश्य ये मंगली ले लो
मधु बदल गया मेरा अब सूरज के टुकड़े में
(रचनाकाल : नवम्बर 1920)
शब्दार्थ :
1. पेर्सेफ़ोना — यूनानी मिथक परम्परा में मृत्युलोक की देवी
2. ताइगा — शंकु-वृक्षों के सघन साइबेरियाई वन-क्षेत्र
3. मंगली — माला
मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय
लीजिए अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
Осип Мандельштам
Возьми на радость из моих ладоней…
Возьми на радость из моих ладоней
Немного солнца и немного меда,
Как нам велели пчелы Персефоны.
Не отвязать неприкрепленной лодки,
Не услыхать в меха обутой тени,
Не превозмочь в дремучей жизни страха.
Нам остаются только поцелуи,
Мохнатые, как маленькие пчелы,
Что умирают, вылетев из улья.
Они шуршат в прозрачных дебрях ночи,
Их родина — дремучий лес Тайгета,
Их пища — время, медуница, мята.
Возьми ж на радость дикий мой подарок —
Невзрачное сухое ожерелье
Из мертвых пчел, мед превративших в солнце.
1920 г.