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वक़्त ऐसा कोई तुझ पर आए / हुमेरा 'राहत'

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वक़्त ऐसा कोई तुझ पर आए
ख़ुश्क आँखों में समंदर आए

मेरे आँगन में नहीं थी बेरी
फिर भी हर सम्त से पत्थर आए

रास्ता देख न गोरी उस का
कब कोई शहर में जा कर आए

ज़िक्र सुनती हूँ उजाले का बहुत
उस से कहना कि मिरे घर आए

नाम ले जब भी वफ़ा का कोई
जाने क्यूँ आँख मिरी भर आए