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वक़्त की आँख से कुछ ख़्वाब नए माँगता है / हुमेरा 'राहत'
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वक़्त की आँख से कुछ ख़्वाब नए माँगता है
दिल मिरा एक दुआ रात गए माँगता है
एक आवाज़ तह-ए-आब बुलाती है मुझे
इश्क़ मुझ से भी वही कच्चे घड़े माँगता है
दर्द कहता है किसी साअत-ए-तंहा में रहूँ
इक मकाँ गहरे समंदर से परे माँगता है
ज़ब्त चाहे उसे रूख़्सत की इजाज़त मिल जाए
अश्क आँखों से मोहब्बत के सिले माँगता है
दश्त दर दश्त लिए फिरता है मुझ को ये जुनूँ
इम्तिहाँ इश्क़ में कुछ और कड़े माँगता है