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वक्ते-रुखसत कोई भी आया न था / मनु भारद्वाज

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वक्ते-रुखसत कोई भी आया न था
इस जहाँ में क्या कोई अपना न था

आपकी यादें तो मेरे साथ थीं
मै तो तन्हा रहके भी तन्हा न था

आदतन ही बस मेरा सर झुक गया
दरहकीक़त ये कोई सजदा न था

आपके आने से खुशबु छा गई
वर्ना मेरा घर कभी महका न था

उम्र भर दुनिया के काम आता रहा
मैंने अपने वास्ते सोचा न था

ऐ 'मनु' वो जाते-जाते कह गए
जान लो अपना कोई रिश्ता न था