भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वक्ते-रुखसत कोई भी आया न था / मनु भारद्वाज
Kavita Kosh से
वक्ते-रुखसत कोई भी आया न था
इस जहाँ में क्या कोई अपना न था
आपकी यादें तो मेरे साथ थीं
मै तो तन्हा रहके भी तन्हा न था
आदतन ही बस मेरा सर झुक गया
दरहकीक़त ये कोई सजदा न था
आपके आने से खुशबु छा गई
वर्ना मेरा घर कभी महका न था
उम्र भर दुनिया के काम आता रहा
मैंने अपने वास्ते सोचा न था
ऐ 'मनु' वो जाते-जाते कह गए
जान लो अपना कोई रिश्ता न था