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वक्त पर / पवन कुमार
Kavita Kosh से
वक्त पर
थम गई है
बारिश
जो गुजरी रात
को
हुई थी,
धो दिए हैं
रास्ते इस बारिश ने।
सूरज भी
खूब वक्त से
निकला है,
किरनें
बिखरा दी हैं
हरसू फिज़ाओं में।
संदली
खुश्बू
भी बिखर गई है हवाओं में।
देर तक
शाख़ों के बिस्तर पर
सोते रहने वाले
रंग-बिरंगे
फूल भी
वक्त से जाग गए हैं।
न जाने कैसे
इन सबको
ख़बर हो गई है
तुम्हारी
आमद की,
सब कुछ वक्त
पर चल रहा है...
इक इल्तिजा
है मेरी
अब तुम भी तो
आ जाओ
वक्त पर।...