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वन भलेमानस बड़े हैं / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र

भाई ऊधो!
वन भलेमानस बड़े हैं
 
कई सदियों हम
इन्हीं की गोद में हैं पले
ये हमारे बने भोजन-वस्त्र-ईंधन
चिता में भी जले
 
भाई मानें
ये हमारी सभ्यता के आँकड़े हैं
 
हाँ, इन्हीं की काठ से
हमने गढ़े थे देवता अपने
काढ़ इनकी छाल
उस पर
किये अंकित पीढ़ियों सपने
 
भाई!
कान्हा कुंज में अब भी खड़े हैं
 
इन वनों ने
अनगिनत चोटें सहीं
फिर भी चुप रहे
कभी खांडव
कभी लाक्षागृह बने
बरसों दहे
 
तनों पर
इनके मसीहे भी जड़े हैं