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वफ़ा का किसको मिला क्या सिला हुआ सो हुआ / कांतिमोहन 'सोज़'
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वफ़ा का किसको मिला क्या सिला हुआ सो हुआ ।
करें न और उसे बेमज़ा हुआ सो हुआ ।।
क़सूर अपना था दिल की कली खिली ही नहीं
हज़ार बार चली थी हवा हुआ सो हुआ ।
मैं अपने आपसे कोई सवाल क्यूँ करता
वहां पे कौन था मेरे सिवा हुआ सो हुआ ।
किसी के लब पे थी ग़ाली किसी के दिल में दुआ
न कोई शिकवा न कोई गिला हुआ सो हुआ ।
मेरे भी सब्र की हद है ये भूल मत जाना
न मेरे दिल को मुसलसल सता हुआ सो हुआ ।
बलाकशाने-मोहब्बत का जो हुआ सो हुआ
अब उसका ज़िक्र करें भी तो क्या हुआ सो हुआ ।
ज़माना सोज़ तेरे दर्द से दुखी होगा
न अपने ज़ख़्म किसी को दिखा हुआ सो हुआ ।।