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वर्ण कविता (2) / अमरेन्द्र
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प से पगड़ी गोल-मटोल
लागै छै माथा पर ढोल
फ सें फूल सुहावै छै
गुम्मां भौरा गावै छै
ब सें बकरी, बानर, बाघ
सब जीवोॅ में सिंहे घाघ
भ सें भाला, भालू, भैंस
कभियो सहै नै केकरो तैस
सुन रे मूसोॅ चूँ-चूँ-चूँ
म सें मुर्गा कुकड़ू-कूँ ।