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वर्तिका-सा जल रहा था / आनन्द बल्लभ 'अमिय'
Kavita Kosh से
प्रेम को निज जब प्रिये अंधियार वारिद ढक रहा था,
तब फलक फानूस पर मैं वर्तिका-सा जल रहा था।
लाख झंझावात आये
है प्रणय चिरजीव अपना,
नेह की प्रतीति प्रियतम
आज चेतनता से जपना,
संशयी शिशु उर में प्रणयी! जब तुम्हारे पल रहा था,
तब फलक फानूस पर मैं वर्तिका-सा जल रहा था।
प्रेम की पौ फट रही है,
तम को न आमंत्रणा दो,
मैं प्रणत प्रणय निवेदित,
कर रहा, नहिं यंत्रणा दो,
प्रेम का सूरज अनंतिम श्वांस ले जब ढल रहा था,
तब फलक फानूस पर मैं वर्तिका-सा जल रहा था।
उर तुम्हारा ही है बंदी,
कौन प्रिय प्रतिभूति देगा,
प्रेम के इस यज्ञ में अब,
कौन; जो आहूति देगा?
उर प्रतिष्ठापत्र-सा जब आँसुओं में गल रहा था,
तब फलक फानूस पर मैं वर्तिका-सा जल रहा था।