भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

वर्षा और भाषा / जगदीश गुप्त

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वर्षा की बून्दों से शब्द शब्द धुलता है।
बून्दों की वर्षा से नया अर्थ खुलता है।
भावों के बादल घिर आते हैं
घिर-घिर कर छाते हैं।
बून्दों की भाषा में सब कुछ कह जाते हैं
रिमझिम रिमझिम अक्षर अक्षर, रस घुलता है।
भादों की कारी अन्धियारी में
रह रह कर
बिजली सी उक्ति चमक जाती है।
वाणी की सोने सी देह दमक जाती है।
वर्षा की बून्दों में
बून्दों की वर्षा में
शब्द अर्थ मिलते हैं,
जीवन सब तुलता है।