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वसंत अइला पर / लक्ष्मीकान्त मुकुल
Kavita Kosh से
पीयराह सरसों से
लहलहात रहे बघार
आ गाँव के खोरीयन में
भभस गइल रहे कुकुरबन्हा के जंगल
नदी घसकत
चल आइल रहे कोनहरा
पषु भूख का मारे
बूड़ा आवत रह सन्
चुरूआ भर पानी में मुँह
छतनार फेंड़न पर
बइठल चिरई
टोहत रहीसन दाना के कन
जैने खड़ा रहे बिजूका
अगोरिया करत
खेतन में खड़ा रहीसन फसल
दूर से उड़ के चलल आवत रहे
चीलन के झुंड
जैसे भरल जात रहे
एकाएक पूरा गाँव