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वहाँ चराग़ यहाँ रौशनी का साया है / गोविन्द गुलशन
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वहाँ चराग़ यहाँ रौशनी का साया है
सफ़र के बाद उजाला क़रीब आया है
उड़ा हुआ है बहुत रंग उसके चेहरे का
ये जब है, राज़ से पर्दा नहीं हटाया है
वो इक चांद सभी के लिए है और इक चांद
ख़ुदा ने सिर्फ़ हमारे लिए बनाया है
सिसक रही थीं बड़ी देर से लवें ख़ुद ही
चराग़ तेज़ हवा ने कहाँ बुझाया है
बस एक रुह से बावस्तगी है दुनिया में
ये अपना जिस्म भी अपना नहीं पराया है