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वहीं रस है / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
अरी बरखा / तुम कहाँ हो
हम प्रतीक्षा कर रहें हैं
बहुत दिन से नहीं आईं
जेठ बीते - हुए सावन
पर घटाएँ नहीं छाईं
वहीं रस है / तुम जहाँ हो
खबर है यह -दूर अलकापुरी में
बादल घिरे हैं
तुम वहीं पर क्यों टिकी हो
जहाँ महलों के सिरे हैं
हम यहाँ हैं / तुम वहाँ हो
कब मुहूरत आएगा
इस ओर आने का तुम्हारा
पूछती है नदी सूखी
कब भरेगी वह दोबारा
नहीं कबसे तुम यहाँ हो