भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वही लोग छै घातोॅ मेॅ / नन्दलाल यादव 'सारस्वत'
Kavita Kosh से
वही लोग छै घातोॅ मेॅ
जे चल्लोॅ छै साथोॅ मेॅ।
सब जानै छै, जानी लेॅ
जोग जगै छै रातोॅ मेॅ।
जिनगी भर नै अइयैं रे
नेता जी के बातोॅ मेॅ।
बीच गंगा मॅे डूबै कम
लोग डुबै छै कातोॅ मेॅ।
सारस्वतॉे की करिये लेतै
सब डुबलोॅ मेॅ जातोॅ मेॅ।