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वह हृदय नहीं है पत्थर है / गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'
Kavita Kosh से
जो भरा नहीं है भावों से
बहती जिसमें रसधार नहीं
वह हृदय नहीं है पत्थर है
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं
( ये पंक्तियाँ गया प्रसाद शुक्ल स्नेही जी ने ’स्वदेश’ नामक अख़बार के लिए लिखी थीं, जो अख़बार के मुख्य पृष्ठ पर ऊपर ही प्रकाशित होती थीं, 'आचार्य स्नेही अभिनंदन ग्रन्थ' में भी यह रचना शामिल है। कुछ लोग इन पंक्तियों को मैथिलीशरण गुप्त का बताते हैं जो ग़लत है। )