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वापस आने के लिए / शलभ श्रीराम सिंह
Kavita Kosh से
तुम्हारी चुप्पी से डर कर अपने भीतर चला गया हूँ मैं
अपनी आवाज़ों के दायरे में घूमता हुआ दिन-रात
भीतर की यह यात्रा
ज़िन्दगी से मौत की ओर ले जाने वाली भले न हो
ज़िन्दगी से ज़िन्दगी की ओर ले जाने वाली नहीं है
तुम्हारी चुप्पी पर
कोई सुबह उतर आती काश !
उतर आती पूरे चाँद की रात!
फूलों का मौसम उतर आता!
उतर आती ठंडी-ठंडी फुहार!
ख़ुद से बाहर निकलने की कोशिश करता मै
तुम्हारी आवाज़ों के दायरे में वापस आने के लिए दुबारा
रचनाकाल : 1992, मसोढ़ा