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वापस लेता हूँ, जो भी कहा है मैंने / निकानोर पार्रा / राजेश चन्द्र

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विदा लेने से पहले
मैं एक अन्तिम इच्छा
पूरी करना चाहता हूँ :

सहृदय पाठक !
जला डालो इस पुस्तक को
इसमें वह नहीं है जो कहना चाहता था मैं
हालाँकि इसे लिखा गया था रक्त से
पर इसमें वह नहीं है जो कहना चाहता था मैं ।

प्रारब्ध मुझसे अधिक खिन्न नहीं हो सकता
मुझे पराजित किया मेरी परछाईं ने ही :
मेरे ही शब्दों ने प्रतिशोध लिया मुझसे ।

मुझे माफ़ कर देना, पाठक, भले पाठक !
विदा लेने से पहले यदि
नहीं ले पाऊँ तुम्हें स्नेहालिंगन में,
मेरे होठों पर न हो कोई कृत्रिम और उदास मुस्कान ।

सम्भव है, यही मेरी वास्तविकता हो
फिर भी सुनो मेरे ये अन्तिम शब्द :
वापस लेता हूँ, जो भी कहा है मैंने ।

दुनिया की महत्तम कटुता के साथ
वापस लेता हूँ मैं,
जो कुछ भी कहा है मैंने ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजेश चन्द्र