भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
विचित्र युद्ध / इंदुशेखर तत्पुरुष
Kavita Kosh से
कैसा यह विचित्र युद्ध
कैसे विचित्र अस्त्र-शस्त्र इसके
एक फूल जैसे हल्के
शब्द की नोंक से
चिर जाता कभी
आंसुओं का बादल
कभी दो बूंद
आंसुओं में डूब जाता
समूचा शस्त्रागार।