विमल विभूति बाबा वरद बहनवा से / भवप्रीतानन्द ओझा
शिव-स्तुति
विमल विभूति बाबा वरद बहनवा से
लम्बे-लम्बे लट लटकावै बाबा बासुकी।
कालकूट कण्ठ शोभै नील बरनवां से
लाले-लाले लोचन घुमावै बाबा बासुकी।
ऐसन कलेवर बनाये देहो नागेश्वर
देखि मन महिमा लोभावै बाबा बासुकी।
अन्धां पावै लोचन विविध दुख मोचन से
कोढ़िया सुन्दर तन पावै बाबा बासुकी।
निपुत्र के पुत्र देत कुमति सुमति देत
निर्धन केॅ करत निहाल बाबा बासुकी।
धन्य-धन्य दारुक बन जहाँ सें आप हर
मेटी देत भाल के कलंक बाबा बासुकी।
परम आरत हमें, सुख-शान्ति सब खोयलों
तेरोॅ द्वार भिक्षा मांगन ऐलैं बाबा बासुकी।
कहत साधकगण मेरी बेरी काहे हर
करुणा करत नाहि आबेॅ बाबा बासुकी।
सबके जे सुनि सुनि दूर करै दुख सब
हमरा के बेरिया निठुर बाबा बासुकी।
कानी-कानी कहौ अबेॅ कहाँ-कहाँ जाव नाथ
अनाथ के नाथ कहावै बाबा बासुकी।
देवघर देवलोक धन्य देव महादेव
हमरौ लेॅ हुक्म देलेॅ जाहौ बाबा बासुकी।
तुम बिनु अब कोई दृष्टि पथ आवै नाहीं
केकरा केॅ अरज सुनावौं बाबा बासुकी।
सुनै छलियै बासुकीनाथ छथिन बड़ दानी बाबा
अब कैन्हें एहन निठुर बाबा बासुकी।
मातु-पिता परिजन सबके छोड़लौं हम
तोरा के शरण आबेॅ ऐलौं बाबा बासुकी।
शरण तोरा के हम सतत धयलों बाबा
तबेॅ तोरा तेजि कहाँ जैवोॅ बाबा बासुकी।
दीननाथ दीनबन्धु आशुतोष विश्वम्भर
आरत हरण नाम तोरोॅ बाबा बासुकी।
कृपा के कटाक्ष दहौ एक बेर हेरोॅ हर
दुखिया के संकट हरहू बाबा बासुकी।
हमहूँ जे अयलौं शरण में तोरा के बाबा
हमरा केॅ देखि केॅ डरेला बाबा बासुकी।
जाहि दिन सें ज्ञान भेलै हमरा केॅ आबेॅ बाबा
हिरदय के बात सब सुनैलौं बाबा बासुकी।
ग्राम-देव ग्राम-लोक ग्राम-धन्य महादेव
सेहो ना सुनलेॅ दुख मोर बाबा बासुकी।
कहत सेवक गण दुहूँ कर जोरि बाबा
दुखिया के दुख सब हरहू बाबा बासुकी।