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नींद आंखों में शब-ए-दिले-बेताब न आई
तेरे ख़मे-अबरू <ref>भंवो को टेढ़ापन</ref> में किया सिजदा जो हमनेबेहतर नजर इससे कोई मेहराब <ref>घुमाव</ref> न आई
देखा दिले-बेताब को अपने तो ‘जफर’ फिर
खातिर <ref>दिल</ref> में मेरे माही-ए-बे-आब <ref>बिना जाल की मछली</ref> न आई
</Poem>
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