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| रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब'
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तेरे सर से तेरी बला जाए जब तक
छले जा छले जा छला जाए जब तक

गला तेरा अच्छाई घोंटेगी इक दिन
बुराई में पल तू पला जाए जब तक

मुहब्बत की राहों में चलना है बेहतर
चला जा चला जा चला जाए जब तक

शबे-वस्ल है ऐ मुहब्बत की शम-आ
सनम तू जले जा जला जाए जब तक

'रक़ीब' आतिशे ग़म बना देगी कुन्दन
गले जाओ पल पल गला जाए जब तक
</poem>
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