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आकर्षण आने से पहले यौवन ढलता।
रूप अविकसित विवश पराया होकर पलता॥
कामुक जन निर्लज्ज थिरकते भ्रू-भंगों पर॥
कुल-भूषण कुल-दूषण बनते मान गँवाते।