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Kavita Kosh से
चिताएँ ये संविधान की हैं
खुलूस, नेकी, वफ़ा, भलाई
नसीब-ए-शब् में सहर है इक दिन
ये बातें बस किस खुशगुमान की हैं मिठाइयाँ बस वो ही हैं फीकीजो सब से ऊँची दुकान की हैं ?
खुली हदें आसमान की हैं
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