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इक नया ज़ख़्म रोज़ खाता हूँ / मनोहर विजय
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07:15, 31 जनवरी 2011
हौसला अपना आज़माता हूँ
पेड़ देता है
फ़ल
फल
मुझे हर बार
‘शाख़ जब भी कोई हिलाता हूँ
अनिल जनविजय
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