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|संग्रह=राम जी भला करें / अनिल जनविजय
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तुम कविता में इतना क्यों इतराती हो
 
क्या बात है जो मुझे नहीं बतलाती हो
 
शब्द-शब्द से नश्तर-तीर चुभोती हो
 
हाव-भाव से पीर हृदय में बोती हो
 
हाँ, मैं दोषी हूँ, समक्ष तुम्हारे, ससि रानी
 
छोड़ तुम्हें परदेस गया मैं, ओ मसि रानी
 
पर, इस बीच जीवन ने हमें कितना बदला
 
पीट-पीट कर बना दिया उसने हमें तबला
 
क्या चाहो तुम मुझ से अब, मैं क्या जानूँ
 
बात कहो गर बिल्कुल सीधी तो पहचानूँ
 
(रचनाकाल: 2002)
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