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रस की फ़ुहार है<br>
तन-मन झूम जाता है<br>
गीत बन जाता है।है<br><br>
प्रेम जिजीविषा का विकास है<br>
रागात्मकता का विलास है<br>
मन-मयूर नाच उठता है<br>
गीत बन निखरता है।है<br><br>
प्रेम मन का विश्वास है<br>
मीठी मनुहार है<br>
रोम-रोम लहलहाता है<br>
गीत बन जाता है।है<br><br>
शूल कहीं चुभता है<br>
दर्द और भी बढ जाता है<br>
अन्तस गुनगुनाता है<br>
गीत बुन जाता है।है<br><br>
बसन्त रितु का प्रसार<br>
विरहणी की अश्रुधार<br>
दर्द छलक जाता है<br>
गीत बन-संवर जाता है।है<br><br>
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