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आग / मोहन आलोक
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02:12, 6 मार्च 2011
जंगल है
मंगल है
मनुख
*
(मनुष्य)
है
इस के सुख ही
सुख है
और दिन ब दिन
अजगर की तरह पल रही है ।
* मनुख = मनुष्य
'''अनुवाद : नीरज दइया'''
</poem>
Neeraj Daiya
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