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'''लेखन वर्षरचना काल: 2004'''
काश कि फिर वह सहर <ref>सुबह</ref> आतीजब तू मुझे मुझको नज़र आती
तेरी आरज़ू है मुझे रात-दिनकभी तू तो इस रहगुज़र आती
पलकें सूख गयीं सूख़ीं राह तकतेतेरी कोई कुछ खोज-ख़बर आती
दरम्याँ रस्मो-रिवाज़ सहीहैंपर तू फिर भी इधर आती
सहाब दिखे <ref>बादल</ref> हैं सूखे दरया पे
कभी बारिश भी टूटकर आती
कई मौतें मरकर मैंने देखी हैंदेखींकभी ज़िन्दगी ज़िंदगी तू मेरे दर आती
क़रार आ जाता पलभर के लिएमिलता मेरे दिल कोमेरे तू ख़ाबों में तू अगर आती '''शब्दार्थ:सहर: संध्या, सुबह, dawn, morning | सहाब: बादल, clouds
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