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Kavita Kosh से
रद्दी से हम
धूल भरे वातायन से लेते दम
नत्थी -सा हो गया अहम अपना
मिलती हैं चुंबन से
कराहती शिराएँ
हवा -हवा हो जाता
आँखों का गीलापन
जीने में कुछ ऐसे शामिल है विज्ञापन
दलदल में फँसे हुए पाँव हैं
मुँह चिढा-चिढा जाती
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