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पर ए हुमा इक महान पर है | परिन्दा ऊँची उड़ान पर है |
ज़मीं को पामाल करने वाला
दिमाग़ जो आसमान पर है |
उतर के धरती पे आ न जाए
वो धूप जो सायबान पर है |
कभी तो आएगी मेरे लब पर
वो बात जो हर ज़ुबान पर है |
बिगड़ के जब से गया है कोई
बनी हुई दिल पे जान पर है |
क़दम हद ए लामकाँ में लेकिन
नज़र अभी तक मकान पर है |
समुन्दरों से कहाँ बुझेगी
वो तिशनगी जो उठान पर है |
" ज़िया " ये कैसी है बदगुमानी
शक उस को मेरे गुमान पर है|</poem>