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'''लेखन वर्ष: 2004२००४/२०११'''
तेरी तीरे-नज़र किस अदा से यार उठती है
रह-रहकर रुक-रुककर ये बार-बार उठती है
हम बीमारि-ए-इश्क़ के मारे हुए हैं और
तेरी नज़र पैनी हो कर होकर बार-बार उठती है
नाज़ो-नख़्वत1 नख़्वत<ref>नाज़ और नख़रे</ref> के पैमाने किस तरह उठाऊँनज़र उठती जब उठे है तो ज़िबह2 ज़िबह<ref>लड़ाई, क़त्ल</ref> को यार उठती है
हम देखते हैं तेरे जानिब3 जानिब<ref>ओर, तरफ़</ref> प्यार की नज़र सेतेरी नज़र, उफ़तौबा! मानिन्दे-कटार4 कटार<ref>तलवार की तरह (आवाज़ करती हुई)</ref> उठती है
उस ग़ैर से तुम को तुमको मोहब्बत हुई है बे-वजहऔर फिर भी नज़र बाइसे-गुफ़्तार5 गुफ़्तार<ref>बात करने के लिए</ref> उठती है
हैं चमन में और भी नज़ारे ऐ ‘नज़र’ लेकिन
फिर क्यों क्योंकर तेरी नज़र सिम्ते-यार6 यार<ref>प्रेयसी की ओर</ref> उठती है
'''शब्दार्थ:1. नाज़ और नख़रे; 2. लड़ाई, क़त्ल; 3. ओर, तरफ़; 4. तलवार की तरह (आवाज़ करती हुई); 5. बात करने के लिए; 6. प्रेयसी की तरफ़{{KKMeaning}}
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