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{{KKRachna
|रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह
|संग्रह=कल सुबह होने के पहले / शलभ श्रीराम सिंह
}}
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<poem>
रिसते नासूरों से
गिरते मवाद को
धोने के पूर्व
गली उँगलियों वाली
अनगिन हथेलियाँ
सिर पर फिरती हैं !
यह
नया जीवन
जीने से पहले
मैं स्वयं के प्रति नतमस्तक हूँ !
(1962)
</poem>
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रिसते नासूरों से
गिरते मवाद को
धोने के पूर्व
गली उँगलियों वाली
अनगिन हथेलियाँ
सिर पर फिरती हैं !
यह
नया जीवन
जीने से पहले
मैं स्वयं के प्रति नतमस्तक हूँ !
(1962)
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