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Kavita Kosh से
अनजाने में युवक की
अपनी ही माँ से
शादी करने की कहानी <ref>इडिपस की कहानी</ref>
पुरानी हो गई
आज धरती की ये संतानें
तीर्थ कण बन विलीन होती
अंतिम अनुभूति है
तुझमें उगती दूबों की कोरों में
ढुलकते तुहिन -कणों में भी
प्रकट होते नन्हें सूरज को देखकर
मेरे दिल में विस्मयित सवेरा
उदित हुआ है !
तेरे पेडों की छांव छाँव मेंहमेशा मेरी कामना गाएॅं गाएँ चरती हैं
तेरे समुंदर से होकर
प्रवाचक के आने साआगमन-सी
हवा चल रही हैं
सब कुछ मुझे मालूम है
पालना और लोरी संजोकर
तेरा जागना
झूला डालना
पीपल के पत्तों के छोर पर नाचना
पंच दल फूल बन ईशारा इशारा देना
मंदिर का कबूतर बन
कुर -कुर रव करनाहजारों हज़ारों नदियों की लहर बनकर
आत्महर्ष के सुरों में सुर मिलाना
शिरीष , कनेर और बकुल बन
नए रंग -बिरंगे छातों को फहराना
घुग्घु का घुघुआना बन
सबको डराना
कोयल की आवाज आवाज़ बनकर
सबका डर दूर करना
अंतरंगों की रंगोलियों में
रंग भरने सौ वर्णों की मंजुषाएॅंमंजुषाएँस्ंाजोकर संजोकर रखना
शाम को सांझ साँझ से
सुनहला बनाना
ओझल हो जाना
फिर उषा को कंधों पर लादना
वन के दिल के घर में
अंडे सेकर कविता को प्रस्फुटित करना
मेरे जीवन को
तू मुझमें समा जाती है
तेरी स्मृतियॉं स्मृतियाँ ही
मेरे लिए पीयूष धारा है !
हे हंस
तुम पंखों सेेसे
संगीत भरते हो
तेरे नन्हें पंखों की नोक पर
क्षण -भर के लिएक्षण -भर के लिए ही सही
मेरे जीवन का मधुर सत्य
प्रज्जवलित हो उठता है !
यह बुझ जाए!
तू अमृत हैेहै
जिसे मृत्यु के बलि के कौए ने चुगा
मुंडित सिर से, भ्रष्ट बन
गठरी ढोकर
अधसूने दिल में दहकनेवाली
ऐसे में
तेरे सिराओं शिराओं सेकहीं छन -छनकर आ तो नहीं आ रही हैकराल -मृत्यु घ्
हे धरती तेरी मृत्यु अभी नहीं
हुई है
लेकिन यह तेरे नाम की तेरी मृत्यु का
शोकगीत है !
तेरी ;और मेरी भी होनेवाली मृत्युके लिएमैं का यह गीत मैं अभी से लिख रहा हूॅंहूँ
तेरी चिता जलाकर रोने के लिए
मैं यहॉं यहाँ बचा नहीं रहूंगारहूँगा
इसलिए बस इतना ही
उल्लेख कर रहा हूॅंहूँ
हे धरती तेरी मृत्यु अभी
नहीं हुई है !
तेरी आसन्न मृृत्यु मृत्यु परतुझे आत्मशांतितेरी आत्मा को शांति मिलेतेरी मृत्यु पर तुझे आत्मशांति मिले !
'''मूल मलयालम से अनुवाद : संतोष अलेक्स'''
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