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अपना शहर / मख़दूम मोहिउद्दीन

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<poem>
ये शहर अपना

अजाब शहर है के

रातों में

सड़क पे चलिए तो

सरगोशियाँ सी करता है

वो लाके ज़ख्म दिखाता है

राजे दिल की तरह

दरीचे बंद

गली चुप

निढाल दीवारें

कोढ़ा मोहरें-ब-लब

घरों में मैय्यतें ठहरी हुई हैं बरसों से

किराए पर
</poem>