भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=रमा द्विवेदी }} <poem> कैसी घटा घनघोर ये, बरसी सी है …
{{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=रमा द्विवेदी }}
<poem>

कैसी घटा घनघोर ये,
बरसी सी है इतनी जोर से।
पलभर में जल ही जल हुआ,
मुंबई को रख दी बोर के॥

कोई तो छत पे चढ़ गया,
कोई तो जल में धंस गया।
कोई पुकारे त्राहि-त्राहि ,
यम सामने कठोर है॥

कोई भूख से बेचैन है,
कोई प्यास से बेहाल है।
बच्चे सिसकियां भर रहे,
और मां भी तो मजबूर है॥

जोड़ा था धन जतन से जो,
सब बह गया बिन यतन के वो।
दिल चीखता ही रह गया,
चलता न कोई जोर है॥

सूरज कहीं दुबक गया,
और वक़्त भी सहम गया।
रात भी ठिठुर गई,
प्रकृति भी कितनी क्रूर है॥

कहने को तो पानी ही था,
पर रच गया कहानी था।
सागर उफनता घर घुसा,
मेंघों का यह प्रकोप है॥
<poem>
335
edits