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एक पेड़ चाँदनी
लगाया है आँगने
फूले तो आ जाना
एक फूल माँगने
एक पेड़ चाँदनी लगाया है आँगने ढिबरी की लौ फूले तो जैसी लीक चली आ जाना एक फूल माँगनेरही बादल का रोना है बिजली शरमा रही मेरा घर छाया है तेरे सुहाग ने ..।।
ढिबरी की लौ जैसी लीक चली आ रही तन कातिक मन अगहन बादल का रोना है बिजली शरमा रही बार-बार हो रहा मेरा घर छाया है तेरे सुहाग ने मुझमें तेरा कुआर जैसे कुछ बो रहा रहने दो यह हिसाब कर लेना बाद में..॥।।
तन कातिक मन अगहन बार-बार हो रहा मुझमें तेरा कुआर जैसे कुछ बो रहा रहने दो वह हिसाब कर लेना बाद में.. ॥ नदी, झील सागर से रिश्ते मत जोड़ना लहरों को आता है यहाँ वहाँ छोड़ना मुझको पहुँचाया है तुम तक अनुराग ने.. ॥।।
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