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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=रमा द्विवेदी }} <poem> हम भी हरे थे,चुलबुले थे, ज़िन्…
{{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=रमा द्विवेदी }}
<poem>
हम भी हरे थे,चुलबुले थे,
ज़िन्दगी के हर रंग जिये थे
आज हम मुरझा गये हैं
दुख के बादल छा गये हैं।
ज़िन्दगी की शाम में
देगे नहीं कोई सदा हम,
आखिरी लम्हें तो जी लें
कल कहेंगे अलविदा हम।
शिकवा नहीं कोई किसी से
सबको भी आना यहीं हैं।
आज जी भर कर विलस लो
छोड़ सब जाना यहीं है।
ज़िन्दगी का चक्र है यह,
घूमकर आता यहीं हैं।
आदि सबका एक है,
अंत भी सबका वही है।
हर जगह खुशियाँ बिखेरो
ज़िन्दगी का मंत्र हो यह।
याद दुनिया में रहें ,
ज़िन्दगी का अन्त हो यह।
<poem>
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हम भी हरे थे,चुलबुले थे,
ज़िन्दगी के हर रंग जिये थे
आज हम मुरझा गये हैं
दुख के बादल छा गये हैं।
ज़िन्दगी की शाम में
देगे नहीं कोई सदा हम,
आखिरी लम्हें तो जी लें
कल कहेंगे अलविदा हम।
शिकवा नहीं कोई किसी से
सबको भी आना यहीं हैं।
आज जी भर कर विलस लो
छोड़ सब जाना यहीं है।
ज़िन्दगी का चक्र है यह,
घूमकर आता यहीं हैं।
आदि सबका एक है,
अंत भी सबका वही है।
हर जगह खुशियाँ बिखेरो
ज़िन्दगी का मंत्र हो यह।
याद दुनिया में रहें ,
ज़िन्दगी का अन्त हो यह।
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