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राम की कृपालुता / तुलसीदास/ '''भाग-7 उत्तर काण्ड प्रारंभ'''
राम की कृपालुता
'''( छंद संख्या 4, 51)'''
बालि-सो बीरू बिदारि सुकंठु, थप्यो, हरषे सुर बाजने बाजे। पल में दल्यो दासरथीं दसकंधरू, लंक बिभीषनु राज बिराजे।।  राम सुभाउ सुनें ‘तुलसी’ हुलसै अलसी हम-से गलगाजे। कायर क्रूर कपूतनकी हद, तेउ गरीबनेवाज नेवाजे।1। (2)  बेद पढ़ैं बिधि, संभुसभीत पुजावन रावनसों नितु आवैं । दानव देव दयावने दीन दुखी दिन दूरिहि तेें सिरू नावैं।।  ऐसेउ भाग भगे दसभाल तेें जो प्रभुता कबि-कोबिद गावैं। रामके बाम भएँ तेहि बामहि बाम सबै सुख संपति लावैं।2। (3)  बेद बिरूद्ध मही, मुनि साधु ससोक किए सुरलोकु उजारो। और कहा कहौं , तीय हरी, तबहूँ करूनाकर कोपु न धारो।।  सेवक-छोह तें छाड़ी छमा , तुलसी लख्यो राम! सुभाउ तिहारो। तौलौं न दापु दल्यौ दसकंधर, जौलौं बिभीषन लातु न मारो।3।
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