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(71)
ब्रत, तीरथ न धर्म जानौं ,बेदबिधि किमि है।
मेरें तौ न डरू, रघुबीर! सुनौ , साँची कहौं ,
खल अनखैहैं तुम्हैं, सज्जन न गमिहैं।
भले सुकृतीके संग मोहि तुलाँ तौलिए तौ, नामकेें प्रसाद भारू मेरी ओर नामिहैं।।
(72)
जाति के, सुजाति के, कुजाति के पेटागि बस,
मानस-बचन-कायँ किए पाप सतिभायँ, रामनामको प्रभाउ, पाउ,महिमा, प्रतापु, तुलसी-सो जग मनिअत महामुनी-सो।
मूढ़ एतो बड़ो अचिरिजु देखि-सुनी सो।।
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