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'''राम-नाम-महिमा'''
(89) राम बिहाइ ‘मरा’ जपतें बिगरी सुधरी कबिकोकिलहू की। नामहिं तें गजकी, गनिकाकी, अजामिलकी चलि गै चलचूकी।।  नाम प्रताप बड़ें कुसमाज बजाइ रहीं पति पांडुबधूकी। ताको भलो अजहूँ ‘तुलसी’ जेहि प्रीति-प्रतीति है आखर दूकी।।
(90)
 
नामु अजामिल -से खल तारन, तारन बारन -बारबधूको ।
नाम हरे प्रहलाद-बिषाद, पिता-भय-साँसति सागरू सूको। ।
 
नामसों प्रीति-प्रतीति बिहीन गिल्यो कलिकाल कराल, न चूको।।
राखिहैं राम सो जासु हिएँ तुलसी हुलसै बलु आखर दूको।।
)
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