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|संग्रह=गोल-गोल घूमती एक नाव / किरण अग्रवाल
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अगर मैं रख दूँ शब्द तुम्हारी गर्दन पर
मुझे करना है शब्दों का इस्तेमाल
धारदार चाकू की तरह
ईज़ाद इज़ाद करनी है वह भाषा
जो मेरी क़लम के इशारों की चेरी हो
जब तक इन्सान और इन्सानियत के बीच
गुफ़्तगू न हो जाए शुरू
बिश्वास विश्वास जानो
तुम्हें चैन से नहीं बैठने देना मुझे
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