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|रचनाकार=त्रिपुरारि कुमार शर्मा
}}
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मैं ख़ुद मैं उलझा रहता हूँ इतना
गिर न जाऊँ कहीं चाँद के दरीचे से
अभी वक्त ने मुझको ओढ़ रखा है
</poem>
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मैं ख़ुद मैं उलझा रहता हूँ इतना
गिर न जाऊँ कहीं चाँद के दरीचे से
अभी वक्त ने मुझको ओढ़ रखा है
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