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अब क्या हुआ? इतनी सारी कविताएँ एक साथ डाल दी, और मुझे जवाब नहीं लिखा। और '''पत्थर हो जाएगी नदी''' की सारी कविताओं में रचना साँचे में आपने '''|संग्रह=पत्थर हो जाएगी नदी / मोहन राणा''' की जगह '''|संग्रह=पत्थर हो जाएगी नदीं / मोहन राणा''' भर दिया, जिससे हर कविता में संग्रह का लिंक लाल आ रहा है। और एक ग़लती ये भी कि इन सभी कविताओं में आपने शीर्षक के प्रारूप में गड़बड़ कर दी। '''किताब /मोहन राणा''': ये ग़लत तरीक़ा है। हम / के आगे पीछे एक एक स्पेस देते हैं। प्रारूप क़ायम रखने से ये फ़ायदा है अगर आप सर्च-बाक्स में टाइप करके सीधा, बिना किसी लिंक के, किसी कविता पर जाना चाहते हैं। जैसे की सदस्यों के वार्ता वाले पन्ने का ये प्रारूप होता है: '''सदस्य वार्ता:Username''' तो मैं बग़ैर हाल में हुए बदलाव वाले पन्ने पर जाए, सीधा पहले पन्ने पर सर्च बॉक्स में '''सदस्य वार्ता:Anil janvijay''' टाइप करता हूँ। शायद आप उस कम्प्यूटर पर बैठे हुए होंगे जिस पर हिंदी इनपुट नहीं है, ऐसे में [http://kaulonline.com/uninagari/inscript.htm इस साइट] पर या [http://www.gate2home.com इधर] जा सकते हैं, इन पर इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड है। --[[सदस्य:Sumitkumar kataria|सुमितकुमार कटारिया]]([[सदस्य वार्ता:Sumitkumar kataria|वार्ता]]) १३:१३, २८ अप्रैल २००८ (UTC)
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