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{{KKRachna
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
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अब गाँवों में घर-घर शोर

:::कि जामुन चूती है।


सावन में बदली

अंबर में मचली,

भीगी-भीगी होती भोर

:::कि जामुन चूती है।

अब गाँवों में घर-घर शोर

:::कि जामुन चूती है।


मधु की पिटारी

भौंरे सी कारी,

बागों में पैठें न चोर

:::कि जामुन चूती है।

अब गाँवों में घर-घर शोर

:::कि जामुन चूती है।


झुक-झुक बिने जा,

सौ-सौ गिने जा,

क्‍या है कमर में न ज़ोर

:::कि जामुन चूती है?

अब गाँवों में घर-घर शोर

:::कि जामुन चूती है।


डालों पे चढ़कर,

हिम्‍मत से बढ़कर,

मेरे बीरन, झकझोर

:::कि जामुन चूती है।

अब गाँवों में घर-घर शोर

:::कि जामुन चूती है।


रस के कटोरे

दुनिया के बटोरे,

रस बरसे सब ओर

:::कि जामुन चूती है।

अब गाँवों में घर-घर शोर

:::कि जामुन चूती है।
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